प्राचीन भारतीय इतिहास


नमस्कार ! जय हिन्द !

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प्रिय पाठकों !

हमने इतिहास और उसके प्रकार से सम्बंधित जानकारी एकत्र कर ली है अतः इसी क्रम में अब हम प्राचीन भारतीय इतिहास के बारे में  विस्तृत अध्ययन करेंगे |

भूमिका 

प्राचीन भारत का इतिहास मानव सभ्यता का उस समय का इतिहास है जब यह अपनी निर्माण की अवस्था में था | जैसा कि हम जानते हैं कि आदिमानव सर्वप्रथम जंगली जानवरों का शिकार करके भोजन करते थे नदियों का पानी पीते थे | इसी कारण जितनी भी सभ्यताओं का प्रादुर्भाव हुआ वह किसी न किसी नदी या घाटी के किनारे हुआ जहाँ उन्हें पानी और शिकार दोनों कुछ सरलता से प्राप्त हो जाते थे | ऐसे ही हज़ारों वर्ष बीते जलवायु परिवर्तन हुआ, मानव का विकास हुआ | धीरे धीरे कच्चे मांस से पके मांस खाने लगे | पशुपालन, कृषि आदि का ज्ञान समय के साथ होता गया | और आज  भी मानव का विकास निरंतर चलता जा रहा है |  भारत में सबसे पहले केरल राज्य में मानव का प्रमाण मिलता जो लगभग 70,000 वर्ष पुराना होने की सम्भावना है | इस मानव के गुणसूत्र अफ्रीका के प्राचीन मानव के गुणसूत्र से पूरी तरह मिलते हैं अतः हम कह सकते हैं कि प्राचीन मानव अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में आये होंगे | 


प्राचीन भारतीय इतिहास का विकास 
प्राचीन भारतीय इतिहास को इतिहासकारों ने मुख्यतः तीन कालखण्डों में बाँटा है -
  1. प्रागैतिहासिक काल 
  2. आद्य ऐतिहासिक काल 
  3. ऐतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल - 
इतिहासकारों ने इस काल में ऐसे अतीत को रखा है जिसमें लिखित सामग्री उपलब्ध न हो अर्थात इस काल में कोई लिपि नहीं थी | अर्थात इस समय के मनुष्यों के जीवन की जानकारी लिखित रूप में उपलब्ध नहीं है | मात्र पुरात्तव साक्ष्य के आधार पर इस काल में मानव सभ्यता का इतिहास लिखा गया है | इस काल को प्राक इतिहास भी कहते हैं | पाषाण काल इसी काल का उदाहरण है | इस काल को तीन काल में बाँटा गया है -
  1. पुरापाषाण काल 
  2. मध्यपाषाण काल 
  3. नवपाषाण काल 
(1)पुरापाषाण काल -
  • इस काल में ही मानव ने पत्थरों के औज़ार और हथियार बनाने  शुरू किये थे | 
  • यह काल प्रारम्भ से 10000 ई० पू० तक माना जाता है | 
  • भारत में पुरापाषाण काल के अवशेष बेलन नदी घाटी, सोहन नदी घाटी, नर्मदा नदी घाटी, एवं मध्य प्रदेश  के भीमबेटका, छत्तीसगढ़ के सिंघन, ओडिशा के कुलिआना में मिलते हैं | 
  • इस काल को भारतीय इतिहासकारों ने पत्थर के औज़ारों के भिन्नता और जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर तीन कालों में विभाजित किया है -
        1. निम्न पुरापाषाण काल 
        2. मध्य पुरापाषाण काल 
        3. उच्च पुरापाषाण काल

निम्न पुरापाषाण काल -
  • इस काल में पेबुल, चॉपर तथा चॉपिंग उपकरणों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं -
  1. पेबुल - यह उपकरण पानी के बहाव में रगड़ खाकर चिकने और सपाट हो जाया करते थे | 
  2. चॉपर - यह उपकरण पेबुल से बड़े तथा पेबुल से ही बनाये जाते थे | 
  3. चॉपिंग - यह उपकरण पेबुल के दोनों किनारों को छीलकर उनमें धार बनायीं जाती थी अर्थात यह द्विधारी उपकरण होते थे |  
  • इस काल के उपकरण सोहन नदी घाटी से मिले होने के कारण इसे सोहन संस्कृति की संज्ञा दी जाती है | 
मध्य पुरापाषाण काल 
  •  इस काल के औज़ारों का निर्माण अच्छे प्रकार क़्वार्टजाइट पत्थर से किया गया था | 
  • इस काल के उपकरण भीमबेटका, सोन घाटी, बेलन घाटी आदि पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं | 
  • इस काल में कई फलक वाले उपकरण प्राप्त होने के कारण इसे फलक संस्कृति की संज्ञा दी जाती है | जैसे-फ्लेक, ब्लेड आदि | 
उच्च पुरापाषाण काल -
  • भारत में इस काल के उपकरण सोन घाटी, भीमबेटका, वेमुला, पुष्कर, सिंहभूमि आदि पुरास्थलों से उपकरण प्राप्त हुए हैं | 
  • इस काल का प्रमुख औज़ार ब्लेड था | 
  • ब्लेड- ब्लेड पत्थर से बना पतले और सँकरे आकार वाला उपकरण था जिसके दोनों किनारे समान्तर होते थे तथा लम्बाई अपनी चौड़ाई से दुगुनी होती थी | 
  • पकरण अत्यधिक छोटे होते थे इसी कारण इतिहासकारों ने इन उपकरणों को माइक्रोलिथ नाम दिया | 
  • इस काल के लोगों ने सबसे पहले कुत्ते को पालतू पशु बनाया था | पशुपालन के साक्ष्य आदमगढ़ (मध्य प्रदेश ) और बागोर (राजस्थान ) प्राप्त हुए हैं | 
  • इस काल में मानव कंकाल का सबसे पहला अवशेष उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के सराय नाहर राय तथा महदहा नामक स्थानों से प्राप्त हुए हैं |  
(3)नवपाषाण काल 
  • इस काल के प्रमुख केंद्र बेलन घाटी,  सोन घाटी, सिंहभूमि आदि हैं | 
  • कुल्हाड़ी, छेनी, खुरपी, कुदाल आदि यहाँ से प्राप्त उपकरणों में से एक हैं | 
  • इस काल की एक प्रमुख बस्ती मेहरगढ़ है जो 7000 ई०पू० मानी जाती है | 
  • बिहार के चिरांद पुरातत्व स्थल से हड्डी के उपकरण पाए गए हैं जो हिरण के सींगो के हैं |  
आद्य ऐतिहासिक काल -
इस काल में मानव सभ्यता के उस अतीत को रखा गया है जिसकी लिपि और पुरात्तव साक्ष्य दोनों प्राप्त है परन्तु लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है | 
उदाहरण के तौर पर - कीलाक्षर लिपि जिसे अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है | यह लिपि सिंधु सभ्यता से सम्बंधित है | 
  • पाषाण युग की समाप्ति के बाद धातु काल प्रारम्भ होता है जिसे आद्य ऐतिहासिक काल कहा जाता है | 
  • हड़प्पा संस्कृति इसी काल  का उदहारण हैं | 

ऐतिहासिक काल -
इस काल में इतिहासकारों ने मानव सभ्यता के उस अतीत को रखा है जिसकी लिपि और पुरातत्विक साक्ष्य दोनों प्राप्त हैं और लिपि को भी पढ़ा जा चुका है |






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